बंजारे
हम अनजान आवारा
बेखबर और बंजारा
बेसबर है हम
वक़्त से मात नहीं खाते
लड़ते है घड़ी के पहरेदारो से
दिन रात का जाल तोड़ते
समय को मात देते है
न सोने का वक़्त देखा कभी
न जागने से मुखातिब है
सूरज के ढलने से नहीं बुझते हमारे दिन
न जागने से सूरज के भोर हुई
न जाने कौन सी दुनिया से है हम
हम अनजान आवारा
बेखबर और बंजारा
रेख़ती सर्द हवाओ से
या, धुप में ठंडी छाओ से
बाते की है हमने
पुराने उजड़े गाँव से
रोकती न दर्द जिस्म की हमे
जब ज़रूरत रूह की भूख की हो
जलती दिए की लौ पे हमने
उजियारे चारो दिशा किये
उजियारे चारो दिशा किये
ज़रूरत की ज़रूरत से बेखबर है
परदे लाज शर्म से बेखबर
चलते है उड़ती धूल संग
थकने को ठिकाना न मिला
बहकाओ तो बहक जाते है
बिना नशे भी झूम जाते है
गर्म हवाओ और सूखे तालाबों से
नरमी और आश्रय ले जाते है
हम अनजान आवारा
रुकना न हमको गवारा
धन गवा बैठे
पूंजी लुटा बैठे
आये थे कुछ लोग देश से तुम्हारे
बिना मोल के ज़मीन का सौदा कर बैठे
जो आज तक किसी का न हुआ
उसकी बोली लगा बैठे
हमने तमाशा कुछ साल देखा
रोते बिलखते सबको बेवजह देखा
कीमती इंसानियत को हमने
लुटते सरे आम देखा
तपते ज्वाले की लौ को
ठण्ड में ठिठुरते
महसूस किया है हमने
रौशनी के तले अँधेरे को
महसूस किया है हमने
रौशनी के तले अँधेरे को
तलवो पे पड़ी दररो से
चेहरे की उभरी झुर्रियों से पूछा
उम्र भर की सिख क्या है
तजुर्बा ज़िंदगी का क्या है
धुंधली आखो में
टुटा फूटा ज्ञान देखा
कौड़ी के भाव बिकते हमने
तुम्हारे जज़्बातो को देखा
कौन कहे कौन सही
कौन कहे कौन गलत
हम ही राजा , हम बिखरी
हम ही चोर , हम ही सिपाही
बुरा यह न अच्छा वो है
अच्छा यह नहीं बुरा वो है
हम हवा के साथी
हम दुल्हन हम बाराती
हम पानी की धार है
और हम ही रेत की प्यास भी
हम अनजान आवारा
कौन कहे कौन सही
कौन कहे कौन गलत
हम ही राजा , हम बिखरी
हम ही चोर , हम ही सिपाही
बुरा यह न अच्छा वो है
अच्छा यह नहीं बुरा वो है
हम हवा के साथी
हम दुल्हन हम बाराती
हम पानी की धार है
और हम ही रेत की प्यास भी
हम अनजान आवारा
बेसबर और बंजारा
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