वक़्त वक़्त हो चला है की मै अपने ज़ख्म, भरने का इंतज़ार करना छोड़ कर उनके साथ लड़ना सिख लू वक़्त हो चला है की भरोसे की लाठी छोड़ कर अपने फैसलो का सहारा लेना शुरू करू अब वक़्त हुआ है की मैं जज़्बातों से ज्यादा हिम्मत से काम लू अब सही मायने में जीना शुरू कर दू अब वक़्त हो चला है की पिछला भुला कर आगे की ओर देखु हां, अब वक़्त हो चला है की मैं अपनी शकशियत से मुलाकात कर कोई नियोजन बांध लू और विशवास दिलाऊ खुद को , नज़रें करम में ज़रूरत पड़ने पर वक़्त से मुखातिब होने से डरूँगी नहीं घबरा कर पीछे भी नहीं हटूंगी किसी के साये का सहारा भी नहीं लुंगी ना अंधरे से रौशनी की ओर भागूंगी क्योंकि वक़्त हो चला है की मैं, खुद को पहचान लू अब मैं मैं हो जाऊ
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