
वक़्त
वक़्त हो चला है की मै अपने ज़ख्म,
भरने का इंतज़ार करना छोड़ कर
उनके साथ लड़ना सीख़ लूं।
वक़्त हो चला है की
भरोसे की लाठी छोड़ कर
अपने फैसलों का सहारा लेना शुरू करु
अब वक़्त हुआ है की
मैं जज़्बातों से ज़्यादा हिम्मत से काम लू
अब सही मायनों में जीना शुरू कर दूं।
अब वक़्त हो चला है की
पिछला भुला कर आगे की ओर देखु
हां, अब वक़्त हो चला है की मैं
अपनी शख़्शियत से मुलाकात कर
कोई नियोजन बांध लूं
और विशवास दिलाऊ खुद को ,
नज़रें करम में ज़रूरत पड़ने पर
वक़्त से मुखातिब होने से डरूँगी नहीं
घबरा कर पीछे भी नहीं हटूंगी
किसी के साये का सहारा भी नहीं लुंगी
ना अंधरे से रोशनी की ओर भागुंगी।
क्योंकि वक़्त हो चला है की मैं,
खुद को पहचान लूं
अब मैं मैं हो जाऊं।

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