मै। आँखे जो खुली मेरी चौराहा सामने था होश न दुनियाँ का खबर न वक़्त का था डर से नोच रही थी नाख़ून के करीब चोट को नमक पड़ा जो ज़ख़्म पे दर्द तनिक न हुआ भर गए ज़ख़्म जिस्म के दाग दामन पर रह गए सुखी पड़ी है निग़ाहें पानी बनके आसमा बरसे पपड़ी सी जमी सूखे होठो पे एक बूँद सासो की राह में दरार पड़ी जो तलवो पे खून से रंगे रस्ते मेरे रोक के साँसे खड़े रहे डर के ,,,आहट की खबर न पड़े देख के आयना घबरा गए बरसो बीते खुद की झलक पाए चार रहे रौशन हुई आँगन बस मेरा जला खबर चार अख़बार हुई चौराहा अमावस में रौशन हुआ राख के ढेर में ढूंढ रही निशान को अपने कुछ यहाँ कुछ वह गिरे थे बदनाम नाम मेरा हुआ चर्चा चार पंचयत हुई गलती की खबर मुझे न थी सोच बैठी थी दस्तूर वही है नाम भी बदनाम है बिना पहचान के पैगाम है कुछ कदम भी न चल पायी न जाने कितनी बार ग...
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