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Showing posts from June 27, 2016
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                                    तलाश  आज उस मुर्ति के आगे खड़ी मैं सोचती हु , ऐस क्या है तुजमे जो बिन देखे सब मानते है, तेरा असतित्व है सब जानते है,      मेरे संतोष का बाँध जब टूट जाये,      तो इस मूर्ति का मोल न रहता।      मेरे सपनो की आस जब जुड़ जाये,      तब यह मूरत भी अनमोल हो जाये।    एक बिन सुल्जी पहेली सी है,    न सास लेती न बढ़ती है,                                                                फिर भी अस्स्तिव में पहचान रखती है,   क्यों यह स्वर्ण गहना है इस पर,   क्यों यह सुगंध फैली है,               क्यों यह चादर रंग बिरंगी,             ...