
तलाश आज उस मुर्ति के आगे खड़ी मैं सोचती हु , ऐस क्या है तुजमे जो बिन देखे सब मानते है, तेरा असतित्व है सब जानते है, मेरे संतोष का बाँध जब टूट जाये, तो इस मूर्ति का मोल न रहता। मेरे सपनो की आस जब जुड़ जाये, तब यह मूरत भी अनमोल हो जाये। एक बिन सुल्जी पहेली सी है, न सास लेती न बढ़ती है, फिर भी अस्स्तिव में पहचान रखती है, क्यों यह स्वर्ण गहना है इस पर, क्यों यह सुगंध फैली है, क्यों यह चादर रंग बिरंगी, ...