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Showing posts from April 28, 2018
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                                                  बंजारे                                हम अनजान आवारा  बेखबर और बंजारा  बेसबर है हम  वक़्त से मात नहीं खाते  लड़ते है घड़ी के पहरेदारो से  दिन रात का जाल तोड़ते  समय को मात देते है  न सोने का वक़्त देखा कभी  न जागने से मुखातिब है  सूरज के ढलने से नहीं बुझते हमारे दिन  न जागने से सूरज के भोर हुई  न जाने कौन सी दुनिया से है हम  हम अनजान आवारा बेखबर और बंजारा  रेख़ती सर्द हवाओ से  या, धुप में ठंडी छाओ से  बाते की है हमने  पुराने उजड़े गाँव से  रोकती न दर्द जिस्म की हमे  जब ज़रूरत रूह की भूख की हो  जलती दिए की लौ पे हमने  उजियारे चारो दिशा किये  ज़रूरत की ज़रूरत से बेखबर है  परदे ...