यूं ना होता तो क्या होता
यूं ना होता तो क्या होता
वक़्त लौट जाता तो क्या होता
क्या होता , बस जो होता अच्छा होता
होना था जो सो तो होता
यूं जो हुआ
बस यूँ न होता
काश ! जो सोचा था सब वैसा होता
आज का पल ऐसा न होता
न होना था बस ना होता
बस यह न होता , बस यह न होता
चली जाती मैं भी हवा संग
एक ओर से छू के
बह जाती पानी संग
बस धार नदिया की सी होके
या उड़ जाती मैं भी पंख लगाए
बस यूं , जो तू न रोके
काश की यु होता की
तेरा बनाया जहां मेरा होता
बंधी डोर से टूट के जाती
इंद्रधनुष को नाप के आती
छू के लहरें फिर उड़ जाती
उड़ जाती तो वापस न आती
ना आती तो क्या होता ,
क्या होता जो मैं उड़ जाती
सूरज से फिर लड़ के आती
चाँद सितारों संग खेल के आती
आँखे मूँद फिर छू हो जाती
छुप जाती फिर न मिलती
ना मिलती फिर क्या होता
क्या होता जो मैं ना मिलती
क्या होता फिर क्या होता
दूर आसमान में चली जाती
वहाँ एक दरबार सजाती
मठाईयोँ का एक पेड़ लगाती
खिलौनों से अपना शहर सजाती
शहर की रानी मैं कहलाती
और पहन ताज़ फिर मैं इतराती
सुन्दर सा एक बगीचा लगाती
ढेरों फूल से उसे सजाती
बना के मेहमाँ तुझे बुलाती
और पारियों की कथा सुनाती
सहेली बन के जो तू चली आती
तू चली आती तो क्या होता,
क्या होता जो तू चली आती
क्या होता जो ये सपना सच हो जाता
काश ये सपना, सपना न होता
सच हो जाता बस इतना होता
ये होता बस यूं होता
मेरा जहां मेरे सपने सा होता

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