ज़माना 

Image result for painting of society


आज कल देख रही हु 
कल की आँच पे आज सेक रही हु 

जैसे साँझ सुबह की रह तकती है 
वैसे ही आज एक चाह रखती हु 

न जाने तू क्यों अनजान है 
बदलती इंसान की फिदरत से हैरान है 

सोच के कल के दुखो को 
आखो से आंसू बहाती हु 

न जाने क्यों इतना सोच जाती हु 

कल जो आने वाला है 
वह रंगों का बोल-बाला है 

न ख़त होगा, न फ़रियाद सुनी जाएगी 
सच तो मुह से भी न बोला जायेगा 

झुठ और फ़रेब का ज़माना होगा 
हर एक रूह मौत को रवाना होगा 

पुनर्जनम की कामना कर फिर 
आँखे  मीच भूल जाने की सोचती हु 

ख़ुली आखो से जैसे कोई स्वपन देखती हु


तू जग को बनाता है 
अपनी मर्ज़ी से वक़्त के साथ बढ़ता चला जाता है 

किसी को सिख दे जाता है उम्र भर सिखने की 

मेरा भी एक काम कर आ 
जिसने बनाया उस पैगाम दे आ 

जिस दिन बनाया था, क्या यह देखने की  कामना की थी 

जब तू अपनों से बर्बाद होगा 
विस्वास का क़त्ल करेगा 

न दर्द होगा न चीख़ निकलेगी 
बस मन ही मन मेरी आत्मा जलेगी 

क्या तब तू देख के शांत रह पायेगा 

जब बन वजह गुनाह पर फैलाएगा 
सच को झूठ की आंच घेर ले जाएगी 

जो आज न देख सका 
वो आने वाले कल की आग देखेगा 

नफरत की आंधी देखेगा 
 मौत का सैलाब देखेगा 

आए जाने वालो उस ता मेरा ये पैग़ाम देना 
देखो। ........ भूल न जाना 

विस्वास की वजह वही है तो 
विनाश का कारण भी वही बनेगा 
Image result for painting of society


Comments

Popular posts from this blog

The DAY and The NIGHT....