रक्त-चरित्र 



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रक्त चरित्र है मेरा
खून से मैला हुआ, ज़मी पे बिखरा

देख उसका गुरुर , मेरे उसूलो संग टूटा पड़ा है

रक्त चरित्र है मेरा
                      खून से रंगा हुआ है

जितने गहरे मेरे ज़ख़्म के बीज जमे
उस से भी गहरे रंग धरती का पड़ा है

मेरे अहम का निशा
देख, धरती को गहरा किया हुआ है


ओढ़े है लाल चादर ज़मी तेरी
आसमा भी आंसू बहा रहा है
मेरे भीगे केशो से होके
बारिश तेरे खून में रंग रहा है

खड़ी हु मैं, तेरे अहम् के बगल में
निर्जीव तेरा बदन पड़ा है
न जाने क्यों,
                मेरे आँखों के आंसू का भी
                रंग आज लाल पड़ा है

रक्त चरित्र है मेरा
                     आज रंग लाल चढ़ा है

माथे का सिन्दूर भी
बारिश संग बाह चला है
टूटी वो काँच की चुड़िया
माला का एक एक मोती मिट्टी में दबा हुआ


अर्द्ध रात्रि को जैसे तेरे
सूरज को चढ़ना पड़ा है
                         देख मेरे आगे
                         तेरे अहम् को झुकना पड़ा है

आगाह किया पहले तूझे
मत छुना जल जायेगा
                     तेरी ज़िद के आगे
                     तू टिक न पायेगा
अहम का मारा तू बाज कहा आ पायेगा
आज़म के देखा न तूने, खुद को बेजान पायेगा

रक्त चरित्र है मेरा
                     तेरे अहम से टूट के बना है
 
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