पहचान
मैं बेटी हु , मैं संगिनी भी हु,
मैं नारी हु।
हा यही पहचान है मेरी,
मेरी शख्सियत तलवार है,और मैं योद्धा हु,
जन्म से मृत्यु तक हर पल जंग लड़ती हु,
कभी जंग जज़बातों की होती है.
तो कभी हालातो की,
कभी जंग सामने खड़े समाज से होती है,
तो कभी खुद में छिपे किसी अंजान से,
कभी मेरी लड़ाई ज़िंदगी की होती है,
और कभी मुझे मौत के लिए लड़ना होता है ,
मैं टकराती हु, विरोध के तुफानो से,
और ठोकर खाती हु आंधविसवस से,
कभी दिशाविहीन हो जाती हु,
और टूट कर युही रेत सी बिखर जाती हु,
और फिर सासो का सैलाब मेरे ठन्डे पड़े शारीर को उम्मीदों की गर्मी देता है,
बिन देखे विसवस करती हु,
और बिन सुने एहसास करती हु,
मैं कभी ज़िद्दी हु , तो कभी शांत भी,
कभी मैँ बेफिक्री हु, तो कभी एहसानमन्द भी,
मैं रोज़ सीखती हु,
और अने वाले का भविष्य तय करती हु ,
मैं जन्ननि हु , जन्मदात्री हु,
मैं ही जीवन का अक्ष हु, आधार हु,
मैं जीवन का दूसरा नाम हु, मैं ही सत्य हु,
न राग हु , न द्वेष हु,
मैं न मोह हु, न माया हु ,
मैं जीवन का दूसरा नाम हु, मैं ही सत्य हु,
न राग हु , न द्वेष हु,
मैं न मोह हु, न माया हु ,
मैं प्रकृति हु,
मैं विविध रूप में प्रत्यक्ष हु,
मेरे सृजन का आधार भी मैं हु और विनाश का कारण भी,
मुझ से शुरू जो हुआ है उसका अंत भी मैं ही हु,
कभी धर्म में हु , और अधर्म का कारण भी,
कभी सच हु तो , झूठ की पहचान भी,
कभी श्वेत हु, और रंगो के नाम भी,
मैं सही हु, और गलत का आवरण भी,
मेरी न जाने कितनी अनसुनी कहानियाँ है।
कुछ कथाओ तो कुछ पुराण की जुबानी है।
कुछ तरकार्थ है कुछ बे तुके भी ,
यही मेरे होने का पहचान भी है और मेरे आने का कारण भी हैं।
मैं स्त्री हु , मैं नारी हु
मैं प्रकृति हु...
Osum yaar
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