तलाश
आज उस मुर्ति के आगे खड़ी मैं सोचती हु ,
ऐस क्या है तुजमे जो बिन देखे सब मानते है,
तेरा असतित्व है सब जानते है,

मेरे संतोष का बाँध जब टूट जाये,
तो इस मूर्ति का मोल न रहता।
मेरे सपनो की आस जब जुड़ जाये,
तब यह मूरत भी अनमोल हो जाये।
एक बिन सुल्जी पहेली सी है,
न सास लेती न बढ़ती है,
फिर भी अस्स्तिव में पहचान रखती है,
क्यों यह स्वर्ण गहना है इस पर,
क्यों यह सुगंध फैली है,
क्यों यह चादर रंग बिरंगी,
मिट्टी के तन को ओढ़े है,
कई न मानू जीवन माया मे,
जब माया से जीवन का सर बनाया है,
तन पे भशम मन से जोगी,
इस साधू ने मिट्टी अपनाया है,
किसकी महिमा का गुणगान करते हो,
किसको पवित्रा की पैमान कहते हो,
जिसका भेष देखा नही,
उस से मज़हब की पहचान करते हो,
सौ लोग होंगे सौ बाते होंगी,
हर संगर्ष के लिए एक ही जीवन होगा।
अपने पहचान पे तेरी चादर डाल लु,
रंग लु संतरी अपना तन भी,
बनु जोगी चालू तेरे संग भी,
बस विवस दिला दे की मिल्व देगा उस से,
भेट जिस संग पहल बार होगी।
बैठ जिस संग सब बाते होंगी,
एक यादगार मुलाकात होगी।
मेरे पाप पुण्य का समाधान देगा,
मुझे मेरी पहचान देगा।
दिल की उलझनों का अंत करेगा,
कोई उपाय उपयुक्त करेगा,
मुझे जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्त करेगा।
जिस दिन जिज्ञासा की प्यास बुझेगि,
उस दिन खत्म यह तलाश होगी।
तब तक भटकूँगी खोज में तेरी,
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