मिटटी की कहानी सुनो , मेरी जुबानी सुनो
सोचा था उसने की अमर शिला सा टिका रहेगा
कोई भी ठोकर मरे अपनी जगह से न हिलेगा
कुछ दोस्त थे उसके नाम था धुप और बरसात
दोस्ती इतनी गहरी कर ली की आती ही कर दी
कण कण सा बिखरा था वो टूट कर चट्टान से
बह कर पनि संग वो निचे आया
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